मुझे मिलना था तुमसे आज। अंकुर के आवाज से उसके अंदर के रोष का पता चल रहा था।
नहीं आ पाई मैं, वो आज मेरा पेट बहुत दुःख रहा था। रीता का पेट दुःख रहा था या नहीं वो तो रीता जाने लेकिन दर्द तो था कुछ।
रहने दो, जब बाहर मिलना होता है तो कोई पेट में ऐंठन नहीं होती लेकिन जब घर आने को बोलता हूँ तो सौ बहाने।
फ़ोन रख दिया गया। रीता ने भी फ़ोन नीचे कर दिया।
पिछले बार का निशान अब तक नहीं गया है उसके बायें स्तन से। अनजाने में हाथ सीने पर चला गया। दर्द तो नहीं है लेकिन अभी भी ज़ख़्म हरा है।
सात महीने पहले मिली थी अंकुर से। अच्छा लगा था उसके साथ घुमना। फिर एक दिन कार पार्किंग में अंधेरे की वजह से रीता ने अंकुर को किस्स कर लिया।
वो अभी प्यार में नहीं थी लेकिन कोशिश में थी। फिर एक दिन घर आने का निमन्त्रण आया और रीता चली गयी।
अगले दिन सुबह जब अपने घर आयी तो रीता, रीता हो चुकी थी। उसी की ग़लती थी जो पहला क़दम उठाया।
लेकिन अब क्या हो सकता था।
मुझे नहीं अच्छा लगता ये सेक्स करना। रीता ने रोका लेकिन जवाब आया- जबतक करोगी नहीं तबतक अच्छा कैसे लगेगा?
नहीं अच्छा लगा मुझे अंकुर। मैं नहीं करना चाहती कभी भी।
अरे एक बार में सबको दिक़्क़त होती है। तुम कोई रोज़ रोज़ वाली नहीं हो इसीलिए तो मुझे अच्छा लगा। अंकुर की शक्ल अलग थी। किसी तरह का ग़ुरूर था चेहरे पर।
“रोज़ रोज़ वाली नहीं हो तुम”
रीता ने अपनी यादों पर लगाम लगाया और फ़ोन मिलाया।
हेलो अंकुर, मैं तुमसे अब नहीं मिलना चाहती। कभी भी नहीं।
क्यूँ क्या किया अब मैंने?
बहुत कुछ किया लेकिन अब मैं नहीं करना चाहती कुछ।
ओह मन भर गया! तुम्हारा मुझे पता था। पहले किस्स किया और जब मज़ा नहीं आया तो छोड़ दिया।
हाँ, नहीं आया मज़ा मुझे।
“तुम मेरे लिए रोज़ रोज़ वाले ही निकले।”