चोरी की इश्क़- 4

राशि के कदम जल्दी जल्दी घर की तरफ बढे चले जा रहे थे| ऐसा नहीं था कि कोई डर है लेकिन वो पुरे रास्ते शर्माते हुए नहीं जाना चाहती थी| कॉलेज से लेकर आज तक कभी सुगम ने गले नहीं लगाया था, सिनेमा हॉल में भी नहीं लेकिन आज अपने दोस्त के सामने बिना किसी बात के उसको गले से लगाया | ये क्या हुआ!

कॉलेज में एक बार कॉफ़ी के लिए सुगम को कॉल किया था|
“सुगम, चलो कॉफ़ी पीकर आते हैं|”
“तुम जाओ मैं आता हूँ- सुगम ने जवाब दिया”
“अरे, मैं साथ चलने को बोल रही हूँ, अलग जाना होता तो फ़ोन नहीं करती|”
“तुम समझ नहीं रही हो, तुम जाओ मैं आता हूँ|”
“समझा दो फिर”
“दोस्तों के साथ हूँ| ”
“दोस्तों के सामने मुझसे मिलने में दिक्कत है? ऐसा बुरी तो मैं नहीं हूँ, तुम बताओ?”
“मुझे मिलने में दिक्कत नहीं लेकिन मुझे सबको नहीं बताना कि मैं तुमसे मिल रहा हूँ|”
“ऐसा क्यों?”
“क्यूंकि हमारी माँ कहती हैं कि लोग नज़र लगाते हैं|”

लेकिन, आज ऐसा क्या हुआ?

“राशि, कहाँ से आ रही?”, जगनारायण, बड़े चाचा दुवार (घर के बाहर का हिस्सा) पर बैठे थे| चांदी से चमकीले बाल और काले-सफ़ेद मूँछ,भरे गाल, पतली नाक और छह फ़ीट की ऊंचाई और फैशन के दीवाने, ऐसे थे जगनारायण।

“अरे, कही से नहीं, चाचा, वो तो हम गांव के छोर तक गए थे खेतों को देखने|”
“आवो बइठो, तनिक तुम्हारा हाल चाल सुन ले फिर जाने कब आओगी? कॉलेज की पढाई कब तक है?”
“बस अभी एक साल और बाकी है और उसके बाद बाहर जाने का एग्जाम होगा, चाचा|”

अभी बात पूरी भी नहीं हुई तब तक दरवाजे पर किसी ने आवाज लगाई| ‘बड़े बाबू हैं क्या?’
‘हाँ हैं, आते हैं’, जगनारायण ने जवाब दिया|

“जा तू अंदर जा, मैं बात करके आता हूँ|”

राशि घर के अंदर पैर रखे भी नहीं कि किसी के बिलखती आवाज़ आयी|

“बड़े मालिक, हम पइसा वापस कर देते लेकिन रामशरण ने बहुत मारा | अस्प्ताल में भर्ती करवा के आ रहे हैं बउवा को| ”
“रे गौरिया, कितना चोट आया है, ठीक है कि नहीं?, जगनारायण ने पूछा|

जगनारायण गांव का एक बड़ा नाम था| खुद के बच्चे नहीं थे इसीलिए पुरे गांव को अपना बच्चा बना कर रखा हुआ था| गांव के बड़े से बड़े और छोटे से छोटे घरों में जगनारायण का नाम लिए बिना दिन नहीं गुजरता था|

‘हम अभी चल कर देखेंगे बउवा को उसके बाद रामशरण से बात करेंगे’, जगनारायण ने मोटरसाइकिल निकाला और गौरी को बैठने का इशारा किया|
राशि ने बाइक निकलते देखा| उसे पता था कि आज रात कुछ तो होगा ही। ये कही सुगम के गांव से तो नहीं थे, नहीं…उसके गांव से होते तो सुगम मिलने नहीं आता आज।

चोरी की इश्क़-3

“अच्छा ठीक है, अब नहीं मिलेंगे उससे। ख़ुश? अब ढोल ना पीटने लगना घर में।”, सुगम धीरे धीरे खेत में उतरने लगा।

खेतों से प्यार था उसको। जब दिसम्बर के ठंड में धान की कटाई होती थी तो पुवाल से बने हुए पहाड़ पर चढ़ना बहुत अच्छा लगता था। दिनाक को हमेशा हरा दिया करता था।

एक बार उसने घर पर पहाड़ बनाने के लिए बापू को बोला था लेकिन बापू को मालिक से पुवाल लाने की इजाज़त नहीं मिली।

मन ममोस कर रह गया सुगम।

ख़ैर अब तो वो पुवाल ख़रीद सकता है अगर चाहे तो लेकिन अब प्यार पुवाल नहीं था। पता नहीं था कि क्या था।

तुम तो कह रहे थे, हम हाथ नहीं पकड़ेंगे? लेकिन तुम तो गले पकड़ लिए भाई साहब। बहुत आगे चला गया है बात। – दिनाक ने चुटकी लेते हुई बात बोली।

अब मैं इस बारे में कुछ नहीं बोलूँगा। जो बताना था बता दिया और तुमने देख लिया। तुम पर बहुत भरोसा है, दिनाक। मैं ऐसा कुछ नहीं होने दूँगा जिससे तू मेरा साथ देने में कभी क़तरा जाए। सुगम ने आँखों में आँखे डाल कर बोला।

हमको तुम्हारा सर्टिफ़िकेट नहीं चाहिए रे। हम अपने दोस्त को बहुत कुछ छोड़ते देखें हैं जिससे वो बहुत प्यार करता था। चाहे कुछ भी हो थोड़ी चोरी तो “इश्क़ में चलती ही है”। दिनाक ने सुगम को पेट में गुदगुदाते हुए बोला।

चल आजा देखते हैं आज कौन घर तक पहुँचता है, आजा दिनाक।

चोरी की इश्क़- 2

“कैसी हो”, सुगम ने आगे बढ़ कर पूछा।

दिनाक सुगम के पीछे ही खड़ा रहा। अपने पैर के उँगलियों की तरफ़ देख रहा था। बड़े गाँव वालों के सामने आकर बात नहीं की थी उसने कभी।

“मैं तो बहुत अच्छी हूँ। तुम बताओ? कब वापस जा रहे कॉलेज? मैंने सोचा पास में ही हो तो मिल लेते हैं।”, राशि एक अलग ही ख़ुशी में थी।

“हाँ, मैडम को पाँच किलोमीटर पास लगता है”, दिनाक ने दूसरी तरफ़ मुँह करके बुदबुदाया।

“सुगम, ये तुम्हारे दोस्त हैं क्या?”, राशि ने सुगम के कंधों के ऊपर से देखा।

“हेलो, मैं राशि, आप?”

“राशि ये है दिनाक, मतलब दिनांक।”

राशि ने हाथ आगे बढ़ाया। दिनाक ने हाथ जोड़ कर नमस्ते किया। छुएगा कैसे भाई। आज तक इधर आकर कभी मुँह नहीं देखा किसी का। पता नहीं ये लड़का क्या कर रहा है।

“आप बस सुगम कब जा रहा ये जानने के लिए बुलाया?” दिनाक ने सर हिलाते हुए पूछा।

“नहीं, मतलब मैं तो बस मिलना चाहती थी। घर नहीं बुला सकती। तुम्हारे घर जा सकते हैं क्या?” बड़े सहजता से पूछा सुगम के तरफ़ देख कर।

“नहीं कैसे जा सकती? हमारे घर नहीं जा सकती।” दिनाक ने सुगम के कमर में चींटी काटते हुए बोला।

“अच्छा ठीक है। मैं महीने के आख़िरी हफ़्ते में निकलूँगी। तुम बताना मुझे। मैं जा रही हूँ।”

“राशि, एक मिनट।”

सुगम ने राशि को गले लगाया।

अबे, क्या कर रहा यार। – दिनाक ने सुगम की बेल्ट खिंचने की कोशिश की।

“अच्छा बाय! जल्दी मिलती हूँ।”

सुगम एक टक लगा कर देखने लगा। दिनाक मुँह बाये खड़ा रहा।

प्यार हो गया है तुमको, सुग़मा। ये ठीक नहीं कर रहे हो तुम। हम बता रहे हैं।, दिनाक जल्दी जल्दी पगडंडियों पे जाने की कोशिश करने लगा। भागना था उसको उस मनहूस जगह से।

जहाँ ग़ुलामी की बदबू हो वहाँ प्यार कैसे पैदा हो सकता है। शहर जाकर बुद्धि में अकाल पड़ गया है। दिनाक के दिलोदिमाग़ में क़हर बरपा हुआ था।

सुगम जल्दी जल्दी भाग कर दिनाक को पकड़ने की कोशिश करने लगा।

तुमको पता नहीं है, वो बहुत अच्छी है। हमारे बीच सब अच्छा चल रहा है। तुम्हीं हो जिसको ये सब पता है। तुम मत बताना किसी को। सुगम ने आगे आकर दिनाक का रास्ता रोक लिया।

ठीक है, नहीं बताते हैं। फिर पाँच साल बाद तुम्हारे बाप इसके यहाँ इसकी शादी का टेंट लगाने जायेंगे। फिर तुम बताना हमको की कैसा लग रहा है। क्या किया तुमने ये? कुछ नहीं है तुम्हारा और उसका, आगे। काहे अपना काम नहीं कर रहे।, दिनाक ने सुगम का हाथ पकड़ कर बोला।

“नहीं करेगी वो शादी। हम बस पसंद करते हैं। बहुत प्रैक्टिकल लड़की है। जानते है कि हम शादी नहीं कर सकते।”

सुगम ने हँसते हुए हाथ छुड़ाया।

“अच्छा प्रैक्टिकल करने आयी थी यहाँ? इतनी दूर रिक्स लेकर आए हम लोग और तुम प्रैक्टिकल लड़की बोल रहे।” दिनाक को ग़ुस्सा सा चढने लगा था।

चोरी की इश्क़

चोरी की इश्क़- 1

“कहाँ चले जा रहे हैं हम”, दिनाक ने अपनी चप्पल रगड़ते हुए पूछा।

एकदम नयी चप्पल ली थी उसने दो महीने पहले, चकाचक और मुलायम। कहाँ इतनी रगड़ खाती हुई घसीटी जा रही थी।

“चलो तो यार, मैं अकेले नहीं जा सकता। किसी से मिलना है।”, सुगम बोलते बोलते मुस्कुरा पड़ा।

छब्बीस से ज़्यादा की उम्र नहीं थी उसकी। बहुत तेज़तर्रार दिमाग़ और उम्र से ज़्यादा का ज्ञान, दोनों की कोई कमी नहीं थी सुगम में।

“काँट हल गया है पैर में हमारे और तुम दौड़ाये चले जा रहे हो यार”, दिनाक ने चप्पल हाथ लेते हुए बोला। काँटा लगने का ग़म पैर से ज़्यादा चप्पल में लगने का था।

“हम नहीं जाएँगे अब। पहले बताओ लेकर कहाँ जा रहे हो। अनाधुन भागे जा रहे। कौन मंत्री है का?”, मुँह बिचकाते हाथ हिलाते अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की।

“नहीं एक लड़की है।” दूसरे दिशा में देखते हुए सुगम ने सच्चाई बतायी। मुँह लाल हो रहा था। पता नहीं चल रहा था की भागने के वजह से लाल हुआ पड़ा है लड़की के नाम से।

“कौन है रे? गाँव की है? बाहर की है? सुंदर है का? घर में बताया की नहीं? नहीं बताया होगा तुम और साथ में अब हमको भी पिटवा दोगे!”, दिनाक ने चप्पल पकड़े हाथ को सर पर रख लिया।

“राशि नाम है। बड़े गाँव की है। कॉलेज में साथ पढ़ते हैं ना।” सुगम ने बड़ी ख़ुशी के साथ बताया।

“तुम पागल हो क्या? मरोगे तुम। बड़े गाँव की लड़की से मिलने जा रहे हो ? साथ में पढ़ते हो तो साथ में बच्चों का नाम भी सोच लिए क्या? दिमाग़ बचा है की नहीं?”

अब तो दिनाक की शक्ल उसके चप्पल के टेढ़े फ़ीते की तरह हो गयी थी।

“नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं है। वो हमें बहुत पसंद करती हैं। उनको सब पता है हमारे गाँव और उनके क़द के बारे में। जब वो ठीक हैं तो मैं कैसे मना कर देता।”,

आँखें झुका कर सुगम ने बोला। काली घनघोर आँखों में एक चमक थी जो दिनाक को दिख गयी थी।

“मना कैसे करते हैं पता ही नहीं भाई को। दसवीं के एग्ज़ाम में पूछ रहे थे तो मुँह टेढ़ा कर के मना कर दिए थे। अब लड़की है तो कैसे मना करें। चलो हम भी तो देखें कौन है ये लड़की जिसने राशि बिगाड़ दी हमारे लड़के की।” सुगम का कंधा झकझोरते हुए दिनाक ने बोला।

अब पगडंडियाँ ख़त्म हो रही थी। कुवाँ आगया। रास्ता ख़त्म। इसके बाद पक्की सड़क थी जो बड़ा गाँव जा रही थी। सुगम और दिनाक बचपन में इस रास्ते अपने माँ के साथ बड़े गाँव जाया करते थे। माँ बर्तन झाड़ू पोंछा करती थी और बाप बँटाई की ज़मीन पर काम।

ख़ैर वो सब पुरानी बात थी लेकिन आज दोनों उस रास्ते बड़े गाँव के एक लड़की से मिलने जा रहे थे जो सुगम के साथ ही कॉलेज में पढ़ाई कर रही थी। यहाँ कोई किसी का मालिक नहीं था।

“तुम का सड़क के बीच में मिलोगे। ये तुम्हारा कॉलेज नहीं है जो जहाँ मन किया खड़े होकर बकैती काटने लगे। यही के यही काट देंगे ये लोग अगर कौनो देख लिया तो।” दिनाक ने अपनी नज़र बाज़ की तरह चारों दिशा में घुमा दी।

“मैं कौन सा हाथ पकड़ रहा हूँ यार। बात ही तो करनी है।” सुगम ने माथे से गिर रही पसीने के धार को हाथ से हटाया।

धूप ज़्यादा थी लेकिन राशि के इंतज़ार में धूप भी अच्छी लगने लगी थी। क्यूँ अच्छी लगने लगी है, इसका जवाब वो ख़ुद को देना नहीं चाहता था। राशि बहुत अच्छी थी, हमेशा पटर-पटर बोलना और हँसना वो भी ज़ोर से।

आख़िरी बार जब काफ़ी हाउस में राशि का इंतज़ार कर रहा था तो राशि ने इतने तेज़ आवाज़ में उसे डराया की उसके मुँह से चीख़ निकल गयी थी।

“सुग़मा, क्या सोच रहा है बे। एके तरफ़ देखे जा रहा। जिन्न है का जो इतना ग़ौर से देखना पड़ रहा है तुमको। देखो, दो बज रहे हैं अभी और हमको भूख लग रही है। जल्दी बोलो उसको यार आने को।”

“एक मिनट यार, एक मिनट। वो देखो, ब्लू कलर का कुछ नज़र आया। वो है राशि।”

“अच्छा, बलु है तुम्हारी राशि”। चिढ़ाते हुए दिनाक ने बोला।

सुगम के चेहरे पे हँसी की एक लम्बी लकीर खींच गयी।

राशि सामने आकर खड़ी हो गयी।

कैन्वस जुते, ब्लू कलर की टी शर्ट, और काली जींस, यहीं तो थी राशि।

रोज़ रोज़ वाली

मुझे मिलना था तुमसे आज। अंकुर के आवाज से उसके अंदर के रोष का पता चल रहा था।

नहीं आ पाई मैं, वो आज मेरा पेट बहुत दुःख रहा था। रीता का पेट दुःख रहा था या नहीं वो तो रीता जाने लेकिन दर्द तो था कुछ।

रहने दो, जब बाहर मिलना होता है तो कोई पेट में ऐंठन नहीं होती लेकिन जब घर आने को बोलता हूँ तो सौ बहाने।

फ़ोन रख दिया गया। रीता ने भी फ़ोन नीचे कर दिया।

पिछले बार का निशान अब तक नहीं गया है उसके बायें स्तन से। अनजाने में हाथ सीने पर चला गया। दर्द तो नहीं है लेकिन अभी भी ज़ख़्म हरा है।

सात महीने पहले मिली थी अंकुर से। अच्छा लगा था उसके साथ घुमना। फिर एक दिन कार पार्किंग में अंधेरे की वजह से रीता ने अंकुर को किस्स कर लिया।

वो अभी प्यार में नहीं थी लेकिन कोशिश में थी। फिर एक दिन घर आने का निमन्त्रण आया और रीता चली गयी।

अगले दिन सुबह जब अपने घर आयी तो रीता, रीता हो चुकी थी। उसी की ग़लती थी जो पहला क़दम उठाया।

लेकिन अब क्या हो सकता था।

मुझे नहीं अच्छा लगता ये सेक्स करना। रीता ने रोका लेकिन जवाब आया- जबतक करोगी नहीं तबतक अच्छा कैसे लगेगा?

नहीं अच्छा लगा मुझे अंकुर। मैं नहीं करना चाहती कभी भी।

अरे एक बार में सबको दिक़्क़त होती है। तुम कोई रोज़ रोज़ वाली नहीं हो इसीलिए तो मुझे अच्छा लगा। अंकुर की शक्ल अलग थी। किसी तरह का ग़ुरूर था चेहरे पर।

“रोज़ रोज़ वाली नहीं हो तुम”

रीता ने अपनी यादों पर लगाम लगाया और फ़ोन मिलाया।

हेलो अंकुर, मैं तुमसे अब नहीं मिलना चाहती। कभी भी नहीं।

क्यूँ क्या किया अब मैंने?

बहुत कुछ किया लेकिन अब मैं नहीं करना चाहती कुछ।

ओह मन भर गया! तुम्हारा मुझे पता था। पहले किस्स किया और जब मज़ा नहीं आया तो छोड़ दिया।

हाँ, नहीं आया मज़ा मुझे।

“तुम मेरे लिए रोज़ रोज़ वाले ही निकले।”

सिगरेट की क़ीमत

ट्रेन में बैठने के बाद रोशनी की साँस धौंकनी की तरह चल रही थी। किसी तरह से मुँह पर हाथ रख कर ख़ुद को सामान्य किया।

सुमन दूसरे डब्बे में बैठा था। उसके पास जाना था लेकिन अभी नहीं जा सकती थी। मना किया था सुमन ने। एक बार ट्रेन चले तो दो तीन स्टेशन पर साथ बैठ जाएगा आकर।

प्रतापगढ के पास के गाँव में रहते थे सुमन और रोशनी और दोनों एक दूसरे बहुत पास थे।

इतने पास थे कि सिगरेट की पहली कश सुमन ने रोशनी के साथ ली थी और सुमन को रोशनी के हर माहवारी की डेट पता थी।

ये साथ वक़्त के साथ और मज़बूत हो चुकी थी। दोनो परिवार को कोई दिक़्क़त नहीं थी क्योंकि उनके लिए सुमन और रोशनी भाई बहन जैसे थे।

रोशनी कॉलेज में थी और पूरे पचीस की हो चुकी थी।

“सुमन, रोशनी को देखने के लिए लड़के आएँगे तो तुम थोड़े दिन न मिलो उससे।”

“क्यूँ नहीं मिलेंगे हम उससे?”

“अरे, नहीं मिलोगे तो मर थोड़े जाओगे? वैसे भी बच्चे नहीं हो जो पल्लू पकड़ कर चलोगे उसका।”

सुमन ने कुछ नहीं बोला। पल्लू पकड़ कर क्यूँ चलेगा वो रोशनी का?

उसे रोशनी की ऐसे शादी करने के बारे में सुनना अच्छा नहीं लगा।

“तुम चाहती हो हम नहीं मिले तुमसे?”

“हमने ऐसा कुछ नहीं बोला सुमन।”

“तो मिलो हमसे आकर, हमको सिगरेट पीना है अभी।”

“ अभी कैसे आयें?”

“जैसे पहले आती थी।”

दोनों खान बाबा के मजार के पास बैठे हुए थे। आज अग़ल बग़ल के जगह आमने सामने बैठे थे।

“हमको नहीं जाना, सुमन। हम हमेशा ऐसे बैठ कर सिगरेट पीना चाहते हैं तुम्हारे साथ और फ़िज़िक्स पर बहस करना चाहते हैं।”

“कहाँ रहेंगे?”

“दिल्ली। वहाँ “लिव इन रिलेशन” में लोग रह सकते हैं। हम पढ़ा लेंगे बच्चों को। तुम चलोगे?”

“ पक्का?”

“पक्का।”

ट्रेन प्रतापगढ़ से बाहर थी।

स्टेशन पर बहुत भीड़ थी।ऐम्ब्युलन्स में दो स्ट्राचेर गए। एक स्ट्रेचर से सिगरेट का ड़ब्बा गिर गया। लोगों ने सिगरेट आपस में बाँट ली, आख़िर बारह की एक आती है न ।

बुल्लु की नींद

बुल्लु की आँखें नींद से भारी हो चुकी थी। सुबह से तो जगा ही रहता है और फिर हर चप्पे की ख़बर रखना एक बहुत थकावट का काम भी है।

निगोड़ी नींद भी कभी कभी ही आती है। ख़ैर आज तो हवा का रुख़ भी अच्छा है और रात भी गहरी है।

इतना सोचेगा तो सोएगा कैसे!

कोई नीचे आ रहा है। धीरे धीरे उतरने की आवाज़ साफ़ आ रही है। बिना चप्पल जूते पहने हुए है कोई तो। बुल्लु ने एक आँख खोल कर सीढ़ियों का मुआयाना किया लेकिन अभी तक तो कोई दिखा।

बुल्लु उठ कर सीढ़ी घर में छुप गया।

वो नीचे उतर चुकी थी। किसी तरह से से ख़ुद को आख़िरी सीढ़ी पर बिठाया। बुल्लु देख रहा था , छुप कर ।

सीढ़ी बहुत ठंडी थी।सीढ़ी के ठंडे पत्थर ने उसके दर्द को और बढ़ा दिया। वो उठने की कोशिश करने लगी। दोनों हाथों से ख़ुद के वज़न को संभालने की लगातार कोशिश हो रही थी लेकिन अब वो जर्जर हड्डियों में ख़ुद को सम्भालने की ताक़त नहीं थी ।

जिन हाथों को सहारा देना था उन्होंने तो हाथ उठा दिया।

बुल्लु आगे आकर हाथ देना चाहता था लेकिन एक चौपाया एक दोपाये की मदद कैसे करता।

सारे बाल बेतरतीबी से कटे हुए थे, ऐसा लगा जैसे अभी किसी अनगढ़ नाई ने कैंची चलायी हो।

एक टी शर्ट पहन रखी थी जिसके ऊपर हल्दी और तेल के दाग़ थे।

रीबॉक के पैंट पर ख़ून के स्याह धब्बे पड़े थे।

आज मिस्टर अग्निहोत्री ने शायद अपना आपा खो दिया होगा अपनी बूढ़ी माँ पर इसीलिए मिसेज़ साहिला अग्निहोत्री के दाहिने पैर के अंगूठे का नाख़ून ग़ायब था। रात के तीन बजे हैं और साहिला अग्निहोत्री ने अपनी सिसकियों को रोकने के लिए मुँह पर हाथ रख रखा था।

बुल्लु अभी भी सीढ़ीघर में ही था।

अभी कुछ देर में नौकरानी आएगी और हर रोज़ कीतरह साहिला को ऊपर लेकर जाएगी।

ऐसे लोग ना मर पाते हैं ना कोई और मार पाता है। अब कौन अपनी ही माँ को जान से मारेगा। ना ना इतना बड़ा पाप नहीं लेकिन रोज़ तो मार ही सकते हैं।

मरती भी नहीं ये इतनी जरठ साँस है इसकी। अब ओल्ड एज होम भी नहीं छोड़ सकते। दस लोगों को कौन जवाब दे ।

“माँजी चलो ऊपर। सर ने दरवाज़ा खोल दिया आपका। चलिए डॉक्टर के पास भी जाना है , क्योंकि आप बाथरूम में गिर गयी थी ना आज।”

सब कुछ सामान्य हो चुका था अब। ना कोई दुःख था ना कोई रो रहा था। बुल्लु अब सो सकता था। कल वो यहाँ नहीं सोएगा। कल वो सीढ़ीघर में ही सोएगा। रोज़ नहीं देख सकता।

The Harrowing Night

‘ Ralive, Tsaliv ya Galive’. (convert to Islam, leave the place or perish)
‘Ralive, Tsalive ya Galive’.
Everywhere, these words are echoing. Every ticking of the biggest wooden wall clock is making him to shiver.
“They are coming. Nobody is going to save us. They are coming to kill us”, a woman is crying.
Everything was drowning inside a pool of blood. People are laughing harrowingly. He feels a steel touch on his back side of neck. It is piercing inside. It is going deep.
‘Stop it. Stop it. Stop it.’
In every middle of the night, he woke up after experiencing this nightmare. He didn’t forget a single thing which was happened since 20 years ago. He was only 5 years old and on that cold night in which he lost his everyone except his grandmother.
The scar on his back side of the neck was still there.
His phone started ringing. This was not a call, this was his alarm which used to remind him to take his medicine.
Vasuki Dar was only 5 years old when his family slaughtered by unknown people without any reasons. He would have died if his neighbours didn’t come out for help. Although, their help didn’t help him much.
He had moved to Daroja from Sopor with his grandmother. He never thought of leaving Kashmir but that night was not freeing him.
He was not meek or coward but he knew one thing, Kashmir was his home ever and forever. His Dadi used to tell him always- People are bad but not Kashmir. You are still alive because Kashmir loves you.
He completed his study in Kashmir and still he wanted to spend his life into Kashmir. He didn’t hate anyone but every night he used to cry.
He was running tuition classes in Daroja’s main market. He spent his time with young children and teenagers. His doctor always told him- If you want to forget things, you have to move to another place. You cannot forget your past, if you encounter them daily.
But how he could leave everything behind? Kashmir is his only family and he didn’t to make distance from that.
He would not go.

Is Tyrion into a trouble? Watch New Trailer of GOT S7

Put everything aside. Fuck this world.
There is a new trailer of Game of thrones, season 7. You gonna love this because this is going to give you a large shot of adrenaline and that too, organic.
The moment when it has confirmed in no way Cersei is going to stop her malicious intentions to win every kingdom. Jaime is still with her, her true love. Watching both of them you will be falling in their incestuous love. Such incests they are.
Last Lannisters, proud northerners, Carzy Targeryen and the Sand snakes. More stuffs are waiting for you in this season.
“Oh my gawd, Grey worm got a chance to get laid with Missandei. R.R Martin has to take a bow. Finally we can see Yara and Ellaria sand with each other in lesbian mode. We all know Yara is what and Ellaria is a bisexual. So, by this we can calculate the love.
So, our Targeryen queen has stormed over Dragonstone with her all fighting men and Dragons.
But, why our lion Tyrion is roaming around on a mountain when everyone is in war?
Dragons and dragons but also there are dead walking in trailer. So be ready to see the flares and flesh.
Jon and Littlefinger are busy in arguments and hitting and kicking under the Winterfell (basement).
So, Melisandre, the red witch has gone nowhere but still in the seven kingdom. I can speculate she is in the Dragonstone. Only I can hope.
By the way watch this with your chin up. Because this is a Game of Thrones.

Kashmiriyat

“Where are you going from middle of the class?”
“Sir, I was thinking to go home. I ain’t feeling good.” Radhika told a plain lie.
“What happened to you?” Abdul sir asked her with a puzzled face.
“You were good in previous class. I think you are taking upcoming debate lightly.”
“Oh, that Kashmir- Liberation from opperssion. I am upto it. Don’t worry.” She looked so confident.
“Ok go but how will you go.?”
Kashmir College of Arts was far away from Daroja. It took 1 hour to come for Radhika. But she did come, everyday.
“I called home for car.”
She went off from the class. Actually, she was not going home. She was going to pick Rafiq, his best friend. After all he was coming with all statics of her video. She was ready to compile a new song with him. However, Rafiq didn’t know much about camera but for his Aka, he had to do it.
She was about to enter into her car, suddenly she heard some argument coming from outside of the college gate.
“Uncle, give me a minute.” She told her car driver and moved forward to see.
She saw a 8 years old girl was arguing with some boys where like 16-18 years. She saw boys pushed her a side after some seconds.
“Hey, stop it guys. What is going on there?”
She saw boys ran out from there. She went to the girl and patted on her shoulder.
“What happened?”
“They were telling me to pelt stone over there.” She directed towards her Radhika’s car.
“why?” She was astonished. Why someone would do this.
“I don’t know. They hit me after I told no.”
“Okay go home now. Should I drop you?”
“No, I can go by myself.”
Radhika sat inside her car on driver’s seat and told her driver to sit beside her. She wanted to drive. But still she had the question- why on my car?
Finally, she reached at her destination, the Daroja bus stand.
“Hello, where are you dog?”
“I am about to reach.”
“I am waiting at stand now. Hurry up.”
Now, she took out her notepad and wrote- ‘Liberation from oppression’.
Kashmir is our home. Kashmir is in our soul. Other than Insaniyat (humanity), Kashmiriyat is what we have got. We have seen slavery, we have seen atrocities, we have seen murders. Now we need Salvation. We are on the verge of becoming a body with soul. Without Kashmir, we are nothing. I, myself Radhika Mirza..
“Hey, Aka.”
“Rafiq, you dog.” She ran towards him to hug him so tight. After a long period of time, she felt presence of a human. She was enjoying the moment. She didn’t want to let him go. She was with him now. Her best friend.